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IMDb
Wikipedia
एक-दो दिन पहले ‘लगान’ को याद कर रहा था। फ़िल्म मनोरंजक रही होगी, हिट तो थी ही, मैंने पूरी देखी नहीं थी। जितनी देखी उसमें जातिवाद को कमी और बुराई की तरह दरशाने की कोशिश अच्छी लगी थी। लेकिन फ़िल्म का मूल कांसेप्ट उस वक्त भी बचकाना लगा था। ‘ऑस्कर’ मिल जाता तो मुझे तो ज़रुर अजीब लगता। क्योंकि मैंने कभी ऐसी घटना या क़िस्सा नहीं सुना था कि किसी मुकदमें में न्याय-अन्याय का फ़ैसला कोई क्रिकेट मैच रखकर और उसमें हार-जीत के आधार पर किया गया हो।
दूसरे किसी खेल का उदाहरण भी लें तो महाभारत का द्रोपदी-प्रसंग याद आता है। मानवीय मूल्यों में विश्वास रखनेवाला कोई भी शख़्स शायद ही इसे अच्छा उदाहरण मानेगा कि खेल में हार-जीत के आधार पर मनुष्यों को दांव पर लगा दिया जाए। आमिर ख़ान और उनके अच्छे कामों का प्रशंसक होने के बावज़ूद एक यथासंभव तार्किक और यथासंभव निष्पक्ष व्यक्ति होने के नाते मैं ‘लगान’ का प्रशसंक नहीं हो सका। सोचिए कि कलको समस्याओं का समाधान अगर ‘लगान’ की तरह किया जाने लगे तो क्या होगा ? कोई व्यक्ति या समूह जातिवादी है कि नहीं, बलात्कारी है कि नहीं, भ्रष्टाचारी है कि नहीं, अपराधी है कि नहीं, क़ातिल है कि नहीं............. किसीको इनकमटैक्स, सेलटैक्स, बिजली बिल, पानी का बिल वगैरह पे करने चाहिए या नहीं, इसका फ़ैसला अगर दोनों पक्षों/व्यक्तियों/समूहों/समर्थकों में क्रिकेट मैच कराकर किए जाने लगें तो ?
मुझे बताने की ज़़रुरत नहीं लगती, आप ख़ूब अंदाज़ा लगा सकते हैं कि क्या होगा।
(अपने ही एक फ़ेसबुक-स्टेटस से एक अंश)
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एक-दो दिन पहले ‘लगान’ को याद कर रहा था। फ़िल्म मनोरंजक रही होगी, हिट तो थी ही, मैंने पूरी देखी नहीं थी। जितनी देखी उसमें जातिवाद को कमी और बुराई की तरह दरशाने की कोशिश अच्छी लगी थी। लेकिन फ़िल्म का मूल कांसेप्ट उस वक्त भी बचकाना लगा था। ‘ऑस्कर’ मिल जाता तो मुझे तो ज़रुर अजीब लगता। क्योंकि मैंने कभी ऐसी घटना या क़िस्सा नहीं सुना था कि किसी मुकदमें में न्याय-अन्याय का फ़ैसला कोई क्रिकेट मैच रखकर और उसमें हार-जीत के आधार पर किया गया हो।
दूसरे किसी खेल का उदाहरण भी लें तो महाभारत का द्रोपदी-प्रसंग याद आता है। मानवीय मूल्यों में विश्वास रखनेवाला कोई भी शख़्स शायद ही इसे अच्छा उदाहरण मानेगा कि खेल में हार-जीत के आधार पर मनुष्यों को दांव पर लगा दिया जाए। आमिर ख़ान और उनके अच्छे कामों का प्रशंसक होने के बावज़ूद एक यथासंभव तार्किक और यथासंभव निष्पक्ष व्यक्ति होने के नाते मैं ‘लगान’ का प्रशसंक नहीं हो सका। सोचिए कि कलको समस्याओं का समाधान अगर ‘लगान’ की तरह किया जाने लगे तो क्या होगा ? कोई व्यक्ति या समूह जातिवादी है कि नहीं, बलात्कारी है कि नहीं, भ्रष्टाचारी है कि नहीं, अपराधी है कि नहीं, क़ातिल है कि नहीं............. किसीको इनकमटैक्स, सेलटैक्स, बिजली बिल, पानी का बिल वगैरह पे करने चाहिए या नहीं, इसका फ़ैसला अगर दोनों पक्षों/व्यक्तियों/समूहों/समर्थकों में क्रिकेट मैच कराकर किए जाने लगें तो ?
मुझे बताने की ज़़रुरत नहीं लगती, आप ख़ूब अंदाज़ा लगा सकते हैं कि क्या होगा।
-संजय ग्रोवर
15-11-2013
(अपने ही एक फ़ेसबुक-स्टेटस से एक अंश)
जिन्दाबाद!
ReplyDeleteFilm ki kahani ke hisaab se cricket match justify hota hai...aap film dekh len shayad utne nirash nahin honge jitne use bina dekhe hain :)
ReplyDeleteचलिए, मैं जब ठीक से देख लूंगा तो दोबारा बात करुंगा।
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