(ये प्रतिक्रियाएं/समीक्षाएं साहित्य या पत्रकारिता के किसी पारंपरिक ढांचे के अनुसार नहीं होंगीं। जिस फ़िल्म पर जितना और जैसा कहना ज़रुरी लगेगा, कह दिया जाएगा । (आप कुछ कहना चाहें तो आपका स्वागत है।)

Friday 1 May 2015

मेरा ट्रेलर: गब्बर इज़ बैक

इस फ़िल्म के बारे में आवश्यक जानकारियां आप इन दो लिंक्स् पर क्लिक करके देख सकते हैं-
IMDb
Wikipedia


भ्रष्टाचार दूर करना फ़िल्मकारों का पुराना शौक़ रहा है।

इस फ़िल्म को देखकर समझ में आता है कि भ्रष्टाचार दूर करने के दो तरीक़े हैं-एक, आपके पास एक अच्छा फ़ाइटमास्टर होना चाहिए ; दूसरे, एक उत्साही संवादलेखक भी होना चाहिए।

ये दोनों हों तो आप दो-तीन घंटे में भ्रष्टाचार दूर कर सकते हैं। पहले भी कई फ़िल्मों में यह किया जा चुका है।

अगर आप थिएटर में भ्रष्टाचार दूर कर रहे हैं तो पॉपकॉर्न और कोल्डड्रिंक साथ ले सकते हैं, घर में देखें तो साथ में हलवा, पकौड़े और अन्य पकवान स्वादानुसार ले सकते हैं।

इस फ़िल्म के बाद मेरे अंदर एक भी चेंज नहीं आया इसलिए मैंने एक चेंज ज़बरदस्ती कर लिया है (जितने दिन चलेगा, चलेगा) ; आगे से मैं फ़िल्म कलाकारों के अभिनय का वर्णन इस भाषा में किया करुंगा कि फ़लां साहब ने अभिनय ईमानदारी से किया है और फ़लां ने थोड़ा भ्रष्टाचार मिला दिया है। ऐसी फ़िल्मों से ऐसे ही चेंज आते हैं।

मैं फ़िल्मों को कोई रैंक नहीं दूंगा, जो भी आह!, वाह!, उफ़!, हाय!, उई! दिल या दिमाग़ से सहज ही निकल पड़ेगा, वही लिख दूंगा।

इससे ज़्यादा नहीं खींच सकता ; प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, फ़ाइनेंसर, ऐक्टर वग़ैरह के नाम गूगल में डालकर पताकर लीजिए, प्लीज़।

यह समीक्षा का ट्रेलर है, जहां पूरी समीक्षा की ज़रुरत होगी, पूरी भी लिखूंगा।



-संजय ग्रोवर
01-05-2015


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