(ये प्रतिक्रियाएं/समीक्षाएं साहित्य या पत्रकारिता के किसी पारंपरिक ढांचे के अनुसार नहीं होंगीं। जिस फ़िल्म पर जितना और जैसा कहना ज़रुरी लगेगा, कह दिया जाएगा । (आप कुछ कहना चाहें तो आपका स्वागत है।)

Wednesday 6 January 2016

तारा, द जर्नी ऑफ़ लव एंड पैशन: उसे अब मर्द नहीं चाहिए

इस फ़िल्म के बारे में आवश्यक जानकारियां आप इन दो लिंक्स् पर क्लिक करके देख सकते हैं -  1, IMDb  2. Wikipedia
(विकीपीडिया पर इस फ़िल्म के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है)



06-01-2016
तारा अपने पति व अन्य परिवारियों के साथ गांव में शराब बनाती है। ख़ानदानी रईस और अय्याश पाटिल भी वहीं से शराब ख़रीदता है। उसकी पत्नी पुलिस से शिकायत करती है और पुलिस तारा के पति बल्लू और सुमि के पति भीमा को गिरफ़्तार कर लेती है।

अंततः तारा रात में शराब बनाकर बेचने का फ़ैसला करती है। बबन्या की नज़र कबसे तारा पर है। इधर सुमि के ससुर की नज़र सुमि पर है। वह भी जब-तब इसके लिए प्रयास करता रहता है। सभी तरह की परेशानियों के बीच तारा, जब-तब लोगों की भी मदद करती रहती है और आगे चलकर घरके मर्दों को भी हौसला बंधाती है, उन्हें रास्ता दिखाती है।

तमाम घटनाओं और संघर्षों के बाद वह दिन आनेवाला है जब तारा का पति जेल से छूटनेवाला है और वह मां बननेवाली है। बबन्या जेल से बाहर आए बल्लू को भड़का देता है कि बच्चा उसका नहीं है। वह भड़क जाता है। पंचायत तारा को गांव छोड़ने का हुक़्म देती है।

कहानी आगे चलती है।

तारा के रुप में अभिनेत्री रेखा राना शुरु के कुछ दृश्यों में कच्ची-कच्ची सी लगतीं हैं लेकिन कहानी आगे बढने के साथ-साथ वे आश्चर्यजनक रुप से परिपक्व अभिनेत्री होती दिखाई देतीं हैं। थोड़ी-ही देर में वे पूरी फ़िल्म को संभाल लेती हैं। अन्य कलाकारों ने भी ठीक-ठाक अभिनय किया है। बबन्या के रुप में रोहित राज कुछ ओवर ऐक्टिंग करते लगते हैं।

फ़िल्म में तीन-चार गीत भी हैं, जो खटकते नहीं हैं और इनकी धुनें, संगीत और शब्द भी अच्छे हैं। फ़िल्म का एक गीत ‘ईश्वरा’ ‘लगान’ के एक गीत ‘ओ पालनहारे’ की नक़ल लगता है, मगर शब्द और धुन मुझे बेहतर लगे।

फ़िल्म 
में कुछ बातें खटकती भी हैं। लगता है कि फ़िल्म किसी चालू प्रतीकात्मकता का शिकार तो नहीं हो गई। विलेन बबन्या मुर्गी काटता है और सुअर पालता है। तारा की ज़िंदगी में उसके पति के बाद आनेवाले दूसरे अच्छे मर्द का नाम किसना है, वह बांसुरी बजाता है और साहित्य पढ़ता है। और अंत में ‘दाग़ धोने’ की घटना तो बिलकुल ‘अग्निपरीक्षा’ को ही जस्टीफ़ाई करती लगती है। इस सबके बावजूद फ़िल्म देखने लायक है।

फ़िल्म से कुछ डायलॉग-
  • फिर जब मेरा आदमी चल बसा, मेरा दर्द भी उसके साथ चल बसा।
  • मेरी ज़िंदगी में जब मर्द आया तो दुख आया। मर्द चला गया तो दुख भी चला गया। अब तो लगता है कि ना ही हम शादी करते ना ही दुखी होते।
  • तारा, मैं अभी भी औरत ही हूं और अभी भी जी रही हूं, अपनी मेहनत से कमाकर खा रही हूं। क्या तुम्हे ऐसा लगता है कि मैं किसी पर बोझ हूं ?
  • अगर औरत चाहे तो किसी भी मर्द के बिना इज़्ज़त से जी सकती है।

इन सभी संवादों को बोलने वाली ‘अम्मा’ का अभिनय भी अच्छा है।

-संजय ग्रोवर
07-01-2016


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