(ये प्रतिक्रियाएं/समीक्षाएं साहित्य या पत्रकारिता के किसी पारंपरिक ढांचे के अनुसार नहीं होंगीं। जिस फ़िल्म पर जितना और जैसा कहना ज़रुरी लगेगा, कह दिया जाएगा । (आप कुछ कहना चाहें तो आपका स्वागत है।)

Tuesday, 28 July 2020

हिंदी फ़िल्मों के कमज़ोर नायक


वो चाहे कोई देशभक्त की इमेज वाला नायक हो चाहे क्रुद्ध युवा या हीमैन, मुझे हैरानी होती कि जब भी किसी फ़िल्म में किसी लड़की, बहन या बेटी की शादी की बात चलती और दहेज का प्रसंग आता तो हीरो उधार लेकर या डाका डालकर या भीख मांगकर लड़की की शादी धूमधाम से करने की बात करता.

मुझे कभी समझ में नहीं आता कि यह आदमी यह बात क्यों नहीं करता कि हम समाज से इस रस्म को ही ख़त्म कर देंगे ?

यह पूरा समाज चार लोगों के समाज से इतना डरता क्यों है ? डरता है तो ऐसे डरपोक लोगों में हीरो कहलवाने की इतनी हवस क्यों है ?

क्या इन लोगों को नहीं मालूम कि इन गंदी रस्मों का असर कितने लोगों के जीवन पर पड़ता है ? 
(क्रमश)